Varsha Parekh
मानवी और संजोग का संबंध लव - हेट का है । परिस्थिति और मनुष्य के बीच युगो... पुराणों का संघर्ष चल ही रहा है । जब अपनी परिस्थिति एवं व्यक्ति के लिए ‘सॉरी’ के भाव का अनुभव करते है तब हम अपनी परिस्थिति से प्रभावित होकर सत्य को देख सकते नहीं है । उ.दा. हम भूखे को खिलाना चाहते है... खिलाते भी है... शायद यह सच न भी हो, क्योंकि सहीं यह भी है कि हम उन्हें अपने चैरिटी का ग़ुलाम बना दें ।
शायद... मेरे बेटे समक्ष वत्सल के जीवन में ईश्वर ने कुछ ऐसा... परंतु अच्छा सोचा होगा और इसकी भलाई समजकर ईश्वर ने उसे प्रिय बनाया होगा । उसके सत्त्कार्यकी लंबी कतार मेरे स्मृतिपटल पर ताध्यश्य होती है । उसके बचपन के कोमल चेहरे से लेकर अन्तिम्यात्रा तक की तमाम यादें मेरे मानसपट पर खड़ी हो जाती हैं । उसका हँसता चेहरा... उसकी आँखें और उसकी बातें मैंने मेरे ह्रदय के कौने में छिपा ली है... और ये मेरे अंतिम श्वास तक रहेगी । शिक्षक विध्यार्थी के संबंध में वत्सल मेरा बेटा बन गया... कारण...
शिक्षक - छात्र के रिश्तें में वो मेरा बेटा बन गया, क्योंकि...
- उसकी हसी एवं अभिवृत्ति...
- उसकी कार्यक्षमता एवं बुद्धि...
- दुसरे छात्रो और शिक्षको के प्रति उस्का व्यवहार...
- all rounder...
- परोपकार की भावना...
- हर प्रवृत्ति मे अग्रेसर...
- पाठशाला - शिक्षको - मित्रो के प्रति निष्ठा और वफादारी...
- वत्सल द्वारा प्राप्त हुए शालाकीय पुरस्कार...
घर आता तब रसोईघर के प्लात्फोर्मं पर बैठकर ढेर सारी बातें करता... बेटा वत्सल... तेरी अदाओं को आज भी मैंने दिल में छिपा कर रखी है और हमेशा रहेगी । परिवार से मिले उच्च संसकारो के कारण कम उम्र में तू हमें बहुत कुछ सिखाकर गया । एक यात्री की तरह हमारे साथ रहा और तेरे कार्यों की सुगंध फैलाकर चला गया । नचिंत होकर अनंतयात्रा पे निकल गया...
बेटा, यह दुःख असहनीय है । शालामें आज तक तेरे जैसा विध्यार्थी आया ही नहीं । बेटा, तू जहाँ भी है, तुम्हें परम सुख और शांति मिले, ऐसी प्रार्थना ईश्वर को हररोज करती हूँ और करती रहूँगी...
तेरी,
वर्षा मैडम
एम.बी.पटेल.इ.मि. स्कूल
गांधीनगर