मुजे अतिप्रिय ऐसा मेरा प्यारा विध्यार्थी वत्सल... मेरा बच्चा था

V - विवेकी
A - आदर्श बच्चा
T - टीचर का प्रिय
S - सरल, सुझबुझ
A - आज्ञत्र्ंकित
L - लविंग

Gone but not Forgotten

वत्सल जब तीसरी कक्षा में पढता था तब से हमारी पहचान बनी । सभी विध्यर्थीओं में उसने स्वयं की सबसे अलग पहचान बना ली । वत्सल की मम्मी की बिनती और उनका मेरे पर के विश्वास को ध्यान में लेकर वत्सल मेरे घर पे अभ्यास के लिए आने लगा । उसकी हकारात्मक विचारशक्ति एवं निखालास्ता के कारण वह मेरे परिवार के साथ हिल मिल गया और सबका प्रिय बन गया । मेरे पति एरफोर्स में काम करते थे इसलिए मेरे परिवार की शिस्त अलग थी । उसकी असर वत्सल पर पड़ी । अपनी माँ से वह कहने लगा... माँ हम अपने घरमें भी ऐसा करेंगे...

वत्सल सिर्फ अभ्यास में नहीं अन्य प्रवृत्ति यों में भी वह अग्रेसर था । सर्वांगी विकास की अपेक्षा वत्सल में नज़र आती थी । वत्सल जब ८जी में आया तब मेरी सर्व विध्यालय इंग्लिश मीडियम में आचार्या के रूप में नियुक्ति हुई और में वहां चली गयी ।

संस्था अलग ... परंतु संपर्क - संबंध मज़बूत बनें ? बार बार मिलना... सुभाशिष के लिए स्वयंकी उपस्त्थिति... और कभी कभी तो अलग मूड की बातें... अनायाश पूछता, मैडम मुजे आर्मी में जाना है... क्या करूँ । मेरे पति के साथ भी मुक्त मन से चर्चा करता । उसकी जिज्ञासवृत्ति संतुष्टिकरण के साथ ही संपन्न होती थी, यह बात स्पर्शनीय है ।

- वत्सलने गीता का बोध आत्मसात किया था । वत्सल अर्थात इस क्षेत्र का धृव का तारा । माँ - बाप दोनों कार्यशील थे परंतु जगृत्ता के साथ वह अपने कर्तव्यपालन में लीन रहता था । उसका स्वापर्ण उसके आचरत में था ।
वह जब कक्षा ११ में था तब उसने वापस मेरी ही शाला में एडमिशन लिया और मैंने भी उसे विकसित होने की संपूर्ण व्यवस्था दी और उसने परिणाम भी पाया । स्वयं का, परिवार का तथा संस्था का नाम रोशन किया ।
कॉलेज में जाकर भी वह हमें कभी न भूला, सदाय आशीर्वाद की उम्मीद के साथ मिलता रहा । हरहमेश अग्रेसर की भावना के साथ जीनेवाला मेरा बच्चा जीवन काल की पूर्ति में भी अग्रेसर रहा । हमें हाथताली देकर इतना आगे निकल गया कि जहां नहीं पहुँच सकती आवाज़... सिर्फ पहुँचेगा हमारा भाव ।
एक पिता की वेदना मैं समज़ सकती हूँ । यह आघात वज्राधज से भी अधिक पिड़ादायक है । मैंने भी मेरा २८ साल का भाई तथा उसका १९ साल के बेटे को बिदाई दी है । यह वेदना अकथ्य तथा अवर्णीय है । परंतु विधि की विचित्रता तथा जगदनियंता के निर्णय के सामने हम सब लाचार है। ईश्वर को जो ठीक लगा होगा, वह उसने किया होगा । यौवन से भरे मेरे पुत्र को क्यों लिया होगा । प्रभु उसको निरंतर शांति देना । अच्छे परिवार में उसका जन्म हो... और किसीका लड़का ईश्वर न छीने.. ऐसी प्रभु से प्रार्थना...
बेटा वत्सल, मेरी अंतिम बक्षीश स्वीकार करना ।

श्रीमती हंसा उपाध्याय
शिक्षण विद एवं
सलाहकार ।

In Gujarati